आज का रूहानी विचार ।। Spiritual Thought of the day

 

रागु धनासिरी महला ३ घरु ४    ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥ होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥ हंउ बलिहारै जाउ साचे तेरे नाम विटहु ॥ करण कारण सभना का एको अवरु न दूजा कोई ॥१॥ रहाउ ॥

अर्थ: हे प्रभु ! मैं तेरे सदा कायम रहने वाले नाम से सदके जाता हूँ। तू सारे जगत का मूल है; तू ही सब जीवों को पैदा करने वाला है कोई और (तेरे जैसा) नहीं है।1। रहाउ।हे प्रभू! हम जीव तेरे (दर के) मंगते हैं, तू स्वतंत्र रह के सब को दातें देने वाला है। हे प्रभू! मेरे पर दयावान हो। मुझ मंगते को अपना नाम दे (ता कि) मैं सदा तेरे प्रेम-रंग में रंगा रहूँ।1।हे प्रभु ! मुझ माया-ग्रसित को (अब तक मरने के) अनेकों चक्कर लग चुके हैं, अब तो मेरे पर कुछ मेहर कर। हे प्रभू! मेरे पर दया कर। मेरे पर यही कृपा कर कि मुझे अपना दीदार दे।2। गुरू नानक जी कहते हैं,  हे भाई! – गुरू की कृपा से जिस मनुष्य के भ्रम के पर्दे खुल जाते हैं, उसकी (परमात्मा के साथ) गहरी सांझ बन जाती है। उसके हृदय में (परमात्मा के साथ) सदा कायम रहने वाली लगन लग जाती है, गुरू के साथ उसका मन पतीज जाता है।3।1।9।

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