उत्तर भारत की सबसे प्रसिद्ध दरगाह बाबा बुड्डन शाह जी की दरगाह श्री कीरतपुर साहिब की पवित्र नगरी में एक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है बाबा बुड्डन शाह जी बगदाद शहर से थे बाबाजी रब की इबादत करते हुए उसकी बंदगी में लीन कुल्लू मनाली से होते हुए श्री कीरतपुर साहिब के एक जंगल में एक ऊंची पहाड़ी के ऊपर उन्होंने अपना डेरा लगाया इतिहासकारों के मुताबिक जब बाबाजी सतगुरु नानक देव जी महाराज जी से मिले थे जब उनकी मुलाकात सतगुरु से हुई थी तब उनकी उम्र 671 साल की थी बाबाजी के पास एक शेर एक कुत्ता और तीन बकरियां थी कहते हैं कि बाबा बुड्डन शाह जी की बकरियों को शेर और कुत्ता चराने के लिए ले जाते थे और उनकी रखवाली भी वही करते थे तो अपनी चौथी उदासी में सतगुरु नानक देव जी कुल्लू मनाली की यात्रा करते हुए बाबा बुड्डन जी के डेरे में पधारे भाई बाला जी और भाई मरदाना जी भी गुरु जी के साथ थे बाबा बुड्डन शाह जी ने गुरुजी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक कटोरी में बकरी का दूध डालकर गुरु जी के आगे रखा तो दूध का कटोरा देखकर सतगुरु नानक बोले की बाबा जी यह दूध हम अभी नहीं पिएंगे हम इसे अपने छठे अवतार में आकर ग्रहण करेंगे तो यह सुनकर बाबा बुड्डन शाह जी कहने लगे कि मेरी अभी ही इतनी उम्र हो चुकी है आपके छठे अवतार तक ना तो मेरे यह प्राण बचेंगे और ना ही यह दूध यह सुनकर सतगुरु नानक बोले की बाबाजी छठे अवतार तक ये दूध और आप ऐसे ही रहेंगे तो गुरु जी यह वचन करकर भाई बालाजी के साथ और भाई मरदाना जी के साथ अपनी अगली यात्रा के लिए चल पड़े साध संगत जी जी बाबा बुधन शाह जी ने सतगुरु नानक की अमानत उस दूध को अपने धूने के साथ रखकर कहा कि ये अमानत श्री गुरु नानक देव जी की है इसे संभाल कर रखना साध संगत जी समय बीता और छठे सतगुरु गुरु हरगोबिंद साहिब जी का समय आ गया तो गुरु जी ने अपने बड़े पुत्र बाबा गुर्दत्ता जी को हुकुम दिया तुम हिमालय पहाड़ के क्षेत्र में एक नगर बसाओ और अपने अगले जन्म के लिए वहां पर एक निवास स्थान बनाओ तो यह सुनकर बाबा गुर्दत्ता जी ने गुरु जी से विनती की कि कृपया मुझे उस विशेष स्थान पर ले जाएं श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी महाराज और उनके पुत्र बाबा गुर्दत्ता जी हिमालय के क्षेत्र का विचरण करने के लिए निकले इसी बीच गुरु हरगोबिंद साहिब जी महाराज जी ने बाबा गुर्दत्ता जी को कहा जब हम अपने पहले जन्म में श्री गुरु नानक देव जी के रूप में यहां पर प्रचार करने आए थे तो यहां पर एक बाबा बुड्डन शाह जी के नाम से एक पीर रहते थे जिनको इबादत करने की बहुत इच्छा थी इसलिए वह लंबी उम्र की इच्छा रखते थे मैंने उन्हें कहा था कि उनका भेंट किया हुआ दूध का कटोरा मैं अपने छठे जामे में स्वीकार करूंगा तो अब वह घड़ी आ गई है जब हमें बाबा बुड्डन शाह जी से मिलकर वह दूध का कटोरा स्वीकार करना है गुरुजी ने बाबा बुड्डन शाह जी को पहाड़ के एक गांव में से ढूंढ निकाला बाबा बुड्डन शाह जी ने गुरु जी का हार्दिक स्वागत किया और कहा यह तो ठीक है कि आप सतगुरु नानक देव जी के उत्तराधिकारी हो आपके चेहरे पर भी वैसा ही नूर है लेकिन कृपया करके आप अपना शाही जामा छोड़कर मुझे उसी रूप में दर्शन दें तो गुरु जी ने बाबा गुर्दत्ता जी को हुकुम दिया कि वह घर जाकर गुरु नानक देव जी का ध्यान कर कर और स्नान कर कर वापस आए तो बाबा गुर्दत्ता जी ने वैसा ही किया तो जब वह वापस आए तो बाबा बुड्डन शाह जी को वह सतगुरु नानक देव जी का रूप ही दिखाई दिए तो बाबा बुड्डन शाह जी उनके चरणों में गिर गए और कहने लगे कृपया कर कर मेरे जीवन मरण के चक्कर को खत्म कर दीजिए तो श्री गुरु नानक देव जी के रूप में बाबा गुर्दत्ता जी ने कहा कि आपकी इच्छा पूरी हुई श्री गुरु नानक देव जी के रूप में बाबा गुर्दत्ता जी ने अपनी रखी अमानत दूध का कटोरा बाबा बुड्डन शाह जी से मांगा बाबा बुड्डन शाह जी ने दूध का कटोरा धुने में से 121 साल के बाद निकाला वह दूध बिल्कुल वैसा ही था जैसा 121 साल पहले था वह दूध बाबा गुर्दत्ता जी ने गुरु नानक देव जी के रूप में ग्रहण किया तो दूध पीने के बाद बाबा गुर्दत्ता जी ने उस गांव में एक बूढ़े ब्राह्मण की मरी हुई गाय को पानी के छीटे डालकर जिंदा कर दिया जब यह बात श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी महाराज जी को पता चली तो वह बाबा गुर्दत्ता जी से बहुत नाराज हुए और बोले कि एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती आज तुमने मरी हुई गाय को जिंदा किया कल जब लोगों को इसके बारे में पता लगेगा तो जहां पर मरे हुए लोगों की भीड़ लग जाएगी तब तुम किस-किस को जिंदा करोगे अब इस जिंदा गाय के बदले में जा तो तुम्हें अपना शरीर त्यागना पड़ेगा या मुझे त्यागना पड़ेगा क्योंकि आपने गाय को जिंदा करके कुदरत के बनाए हुए नियम से छेड़छाड़ की है तो यह सुनकर बाबा गुर्दत्ता जी सतगुरु जी से कहने लगे कि पिताजी गलती मुझसे हुई है तो इसकी सजा भी मुझे ही मिलनी चाहिए तो पिता जी से आज्ञा लेकर बाबा गुर्दत्ता जी बाबा बुड्डन शाह जी के पास पहुंचे और बोले कि बाबा जी मुझे आपका स्थान चाहिए मुझे अपना शरीर त्यागना है आप अपना डेरा अगली पहाड़ी पर बना लीजिए तो ये सुनकर बाबा बुड्डन शाह जी बोले कि यह स्थान भी आपका है और यह शरीर भी आपका है परंतु जब साधु-संत यहां पर आएंगे और माथा टेक कर चले जाएंगे तो मेरे पास अगली पहाड़ी पर कौन आएगा तो यह सुनकर बाबा गुर्दत्ता जी बोले कि मेरा घर आपका घर और आपका घर मेरा घर यानी मेरे घर और आपके घर में कोई अंतर नहीं है कोई फर्क नहीं है जो भी संगति जहां पर आएगी उनकी यात्रा आप के दरबार पर ही माथा टेक कर सफल होगी यह सुनकर बाबा बुड्डन शाह जी अपना शेर कुत्ता और बकरियां लेकर दूसरी पहाड़ी पर चले गए बाबा बुड्डन शाह जी के स्थान पर बाबा गुर्दत्ता जी ने लगभग 1638 ईसवी में अपना शरीर त्याग दिया इसी स्थान पर आज गुरुद्वारा बाबा गुर्दत्ता जी स्थित है और दूसरी तरफ बाबा बुड्डन शाह जी ने 802 साल और 13 दिन की उम्र भोग कर अपना शरीर त्याग दिया साध संगत जी कहते हैं कि उनका शेर कुत्ता और बकरियों ने भी उसी समय प्राण त्याग दिए जब यह बात गुरुजी को पता चली तो उन्होंने बाबा गुर्दत्ता जी का अंतिम संस्कार किया और बाबा बुड्डन शाह जी को मुस्लिम रीति रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया यह दोनों स्थान आज धार्मिक स्थल है जहां पर बाबा गुर्दत्ता जी ने अपना शरीर त्यागा था आज वहां गुरुद्वारा है और जहां पर बाबा बुड्डन शाह जी ने शरीर त्यागा था आज वहां पर दरगाह है और ये माना जाता है कि जब तक संगत बाबा बुड्डन शाह जी की दरगाह पर माथा नहीं टेक लेती तब तक उनकी यात्रा सफल नहीं होती ।
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