साध संगत जी जब सतगुरु अर्जन देव जी महाराज श्री करतारपुर साहिब नगर का निर्माण करने लगे थे तो उन्होने एक सुंदर स्थान देखा और वचन किया कि यहां पर एक सुंदर घर का निर्माण करें उस समय संगत ने तुरंत उधम किया और कारीगरों को बुलाकर काम शुरू करवा दिया गया तो गुरु जी ने उनको कहा कि यहां पर एक बड़े घर की उसारी करें तो सभी संगत ने हाथ जोड़कर सतगुरु के आगे विनती की हे सतगुरु जी दो अब इस इलाके में अच्छी और मोटी लकड़ी नहीं मिलती और उस लकड़ी के बिना संगत के लिए बड़ा घर नहीं बन सकता तो यह सुनकर सतगुरु ने वचन किए कि आसपास लकड़ी की खोज करें और उस लकड़ी का जो भी कोई जितना भी दाम लेना चाहे उसे दे दे और कार्य पूरा करें तो सतगुरु का हुक्म सुन कर सिखों ने उस लकड़ की खोज के लिए जगह-जगह सेवादारों को भेज दिया उस घर के लिए जितनी भी लकड़ी चाहिए थी उसकी खोज के लिए सभी इधर-उधर फैल गए और लकड़ी को इकट्ठा करने में लग गए उन्होने बहुत सारे गांव में जाकर देखा लेकिन उन्हें कहीं से भी बड़ी लकड़ी प्राप्त नहीं हुई तो सीखो ने सतगुरु को जाकर बताया कि हे गुरु जी हमने सभी जगह ढूंढा है लेकिन हमें लकड़ी नहीं मिली जब यह वार्तालाप सतगुरु से हो ही रही थी तो संगत में से एक सिख ने कहा कि हे गुरु जी हमें घर के लिए लकड़ी नहीं मिली है लेकिन एक जगह है जो कि मैं जानता हूं वहां पर एक बहुत बड़ी डाली का पेड़ खड़ा है उसके बराबर का पेड़ यहां आस-पास और कहीं नहीं है वह बहुत ही बड़ी डाली का पेड़ है लेकिन वह आपके हुकुम के बिना हमारे हाथ नहीं आएगी क्योंकि उस पर कोई शक्तिशाली चीज रहती है जिसके कारण उसे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता कोई ऐसी चीज है जो उस में समाई हुई है और उसे बहुत लंबा समय हो गया है उसमें कोई शक्तिशाली चीज है जिसे वहां रहते हुए बहुत समय हो चुका है वहां पर बहुत सारे लोग दूर-दूर से आते हैं और उस पेड़ के आगे जाकर उसको नमस्कार करते हैं और माथा टेकते हैं जगह जगह लोग उसके आगे सिर झुकाते है उससे डरते है उस सिख की बात सुनकर गुरु जी ने वचन उचारे कोई सिख वहां पर जाए और जाकर उस टाहली को काट कर ले आए जिससे की बड़ा घर बनाने का काम पूर्ण हो सके वचन सुन कर भाई प्राना जी उधर चल पड़े जहां पर वह टाहली का दरखत था वह हाथ मे कुहाड़ा और तरखानो को साथ लेकर गुरु को याद करते हुए वहां चला गया उसने वहां पर जाकर बहुत अच्छी टाहली देखी भाई प्राना जी के साथ जो तरखान था उसका नाम साधारण था जो तन और मन करके गुरु का सिख था उसने पूरी टाहली को देखा और सोचा कि इसका एक सुंदर भारी थम बनेगा इससे सुंदर घर बन जायेगा ये बहुत ही मजबूत लकड़ी लगती है जो भार सहन कर सकेगी उसने हाथ मे कुहाड़ा लेकर टाहली के पास जाकर कुहाड़ा मारा तो टाहली में से आवाज़ निकली हे भाई प्राना जी मेरी हालत के बारे मे सुने बहुत लंबे समय से मेरा इस टाहली में वासा है और आप इसका नाश करने आए है गुरु और गुरु के सिख अनंत है जिनके उपर मेरा जोर नही चलता मैने गुरु जी का कुछ भी नही बिगाड़ा फिर वह मेरे निवास स्थान को क्यो नाश करना चाहते है संसार मे मेरी बहुत पूजा होती है लोग बहुत सारी भेटें मुझे अर्पण करते है आप वापिस चले जाए इस टाहली का नाश मत करे मेरी गुरु जी के आगे बेनती करें कि मेरी शरण आए की रक्षा करें इस टाहली को सलामत रहने दे इस तरह मेरी बेनती गुरु जी के आगे रखे फिर गुरु जी का जो हुकम हो सुन कर वापिस आ कर मुझे बताएं तो ये सुनकर भाई प्राना जी और तरखान बहुत ही हैरान हुए और आपस मे बात करने लगें की अपने स्वार्थ के लिए इसको काटना अच्छा नही है और फिर इसने बहुत ही निमाना और दीन होकर बिनती की है और इसमें कोई अहंकार आदि की भी कोई गिनती नहीं एक बार गुरु जी के पास जाकर ये सारी बात बता दे ये कहकर वह नगर की तरफ़ चल पड़े यहां श्री गुरु अर्जन देव जी महाराज बैठे हुऐ थे तो उन्होने हाथ जोड़कर बेनती की हे गुरु जी वह पेड़ बहुत भारी और मजबूत है जब हम उसको काटने लगे तो उसमें से आवाज़ निकली कि आप क्यों मेरा काम बिगाड़ रहें हो बहुत सारे गांव मेरी पूजा करते है और अनेक तरह की भेंट मुझे चढ़ाते है इस टाहली के नाश हो जाने के कारण मेरी सारी पूजा नाश हो जायेगी कोई इस्त्री पुरष मुझे जान नही पाएगा आप ये मेरी सारी पीढ़ा गुरु जी को जाकर सुनाए फिर आप वैसे ही करना जैसे गुरु जी आपको हुकम करेगें साध संगत जी सतगुरु अर्जुन देव जी महाराज बहुत ही कोमल थे तो जैसे ही उन्होंने यह बातें सुनी तो उन्होंने तुरंत कहा कि हम अभी उस डाली के पास जाते हैं और सतगुरु ने फरमाया कि हम हर प्रकार से उसको धीरज देने का प्रयास करेंगे तो ऐसा कहकर सतगुरु सवार होकर उस डाली को देखने के लिए चल पड़े बहुत सारे सेवक भी इस बात को लेकर हैरान होने लगे की टाहली में से आवाज निकलती है उस समय वह भी गुरुजी के साथ चल पड़े और वे सभी धीरे धीरे चल कर टाहली के पास पहुंच गए जब सभी ने टाहली के पास जाकर देखा और नमस्कार की तो तुरंत ही उस डाली में से आवाज पैदा हुई और फिर उस समय वह सतगुरु के आगे विनती करने लगा कि हे गुरु जी आप सभी को सुख देने वाले हो फिर आप जी मेरे स्थान को क्यों नाश्ता रहे हो मैंने कभी भी गुरु घर का कोई भी काम नहीं बिगड़ा कोई भी बाधा मैंने गुरु घर के काम में नहीं डाली फिर आप जी ने मेरा कौन सा विकार विचार किया है आसपास के सभी गांव के लोग मेरे आगे माथा टेकते हैं मेरी पूजा करते हैं वृक्ष के बिना सभी मेरी पूजा करने से हट जाएंगे और फिर वह मुझे उपहार नहीं देंगे तो सतगुरु जी ने यह सुनकर उस को हौसला देने के लिए कहा कि यह सारा स्थान लकड़ी से खाली है हम अच्छी और मोटी किस्म की लकड़ी खोज रहे हैं लेकिन हमें नहीं मिली हम विशाल घर बनाना चाहते हैं जिसके लिए हमें अच्छी लक्कड़ की जरूरत है इसके बराबर और कोई मजबूत लकड़ी यहां पर नहीं है हम तेरी मानता को नहीं मिटायेंगे जिस स्थान पर तेरी ऊसारी होगी उस स्थान पर भी तेरी पूजा होगी और तेरी पहले से भी ज्यादा पूजा होने लग जाएगी जो लोग पहले तेरी पूजा करेंगे तेरा दर्शन करेंगे उसके बाद उन्हें हमारे दर्शन होंगे आप वहां पर सुखी सलामत रहेंगे और अनेकों प्रकारों से आप की पूजा होगी आप मन की तरफ से किसी बात की कोई चिंता ना करें तो ऐसी बातें सतगुरु के मुख से सुनकर उसका मन निर्मल हो गया हल्का हो गया इस तरह के वचन सुनकर उसका हृदय बहुत आनंदमई हो गया उसने सतगुरु को नमस्कार की और फिर चुप हो गया और उसने उनके द्वारा अपने आप को कटवाने में ही अपना भला समझा गुरुजी ने तरखान को कहा कि जितना भी थम आपने रखने के लिए कहा है उसकी गिनती अच्छे से कर ले इस प्रकार सब कुछ तैयार कर कर जब उसका भार हल्का हो जाएगा तब उसको एक बैलगाड़ी पर रखकर उसे काट कर ले आए यह कहकर सतगुरु अपने नगर की तरफ वापस चले आए फिर वह तरखान कोहड़ा लेकर डाली को काटने लगा उसने जोर के साथ टाहली को नीचे से ही काट लिया उसने सभी को इकट्ठा करके उसे गिरा दिया उसने सभी डालिया काट दी और मिन्नति लेकर जितनी लकड़ी चाहिए थी वह निकाल ली बहुत सारे लोगों ने गड्ढा मंगवाया और उस लकड़ को उसके ऊपर रख दिया बड़ा यतन करके उसको लाया और वहां गिरा दिया यहां बड़ा घर उसार रहे थे गुरु जी उस लकड़ को देखने के लिए आए और सबको कह रहे थे कि बहुत अच्छी लकड़ी घड़ी है फिर उस लक्कड़ को जब कारीगर ने देखा तो उसको खड़े करने के बारे में सोचा गया सभी लोग लग पड़े और उसको ऊपर उठा लिया और अच्छी जगह देख कर उसको खड़ा कर दिया और ऊपर स्वा नो हाथ लंबा हाथ चाहिए था उसकी लंबाई कम हुई देखकर सबके मन मे हैरानी हुईं उसकी जब मिन्नती हुईं तो काम बिगड़ा हुआ जाना वह थम आठ उंगलियों जितना कम हो गया था उसके जैसा थम और कही से भी प्रपात नही हो सकता था तो उस समय सेवको ने गुरु जी के आगे बिनती की कि हे गुरु जी बहुत बड़ा काम बिगड़ गया है बड़ा यतन करके लकड़ी लाए थे वह आठ उगलियों जितनी कम निकली है ये सुनकर गुरु जी चलकर वहां आ गए वहां पर वह थम छोटा हुआ खड़ा था सभी वहां पर खड़े देख रहें थे कि घर बनाने मे बिगन पड़ गया है वह पश्चाताप करते हुए कह रहें थे कि अब इसके जैसी लकड़ी कहा से लेंगे तो गुरु अर्जन देव जी ने थम छोटा हुआ देखा तो मुख से वचन फरमाया कि गुरु घर की उसारी के लिए पेड़ को काटा था पहले ये विशाल टेहना अपनी खुशी से बड़ा था इस गुरु घर मे संगत दिन रात वाहेगुरू के नाम का सिमरन करेगी इस लिए अब हमारे कहने पर जितना ये कारीगर चाहते है उतना बड़ जाए और वहां पर बहुत सारे लोग खड़े देख रहें थे और जितना वह कारीगर उस थम की लंबाई चाहता था वह उतना बड़ गया उसको लंबा हुआ देख सभी हिरदे मे हैरान हो गए थम को अच्छी तरह खड़ा करकर सभी बहुत प्रसन्न हुए और रहने के लिए घर बनाया गया जितनी संगत चलकर वहां आती तो पहले वहां जाकर माथा टेकती और उसके बाद जाकर गुरु जी के दर्शन करती इस तरह उस स्थान की अच्छी मानता हो गई थी वह थम बहुत लंबे समय तक उस घर मे टिका रहा जैसे गुरु जी ने फरमाया था उसी तरह उसका सतिकार होता रहा तो फिर जब खालसा राज हुआ और तुरको से दुश्मनी बहुत बड़ गई तो बहुत सारे जालम तुर्क चढ़ कर आए सिंह उनके साथ लड़े और बहुत शहीदिया पाई, महा मुर्ख तुर्क इसको पूजा का स्थान जानकर वहां पर बहुत सारी लकड़ियां इकठियां करकर ले आए और थम के चारों तरफ़ रखकर उसको आग लगा दी तो उस समय बड़ी पुकार के साथ वह थम धरती मे समा गया तो उसके बाद किसी ने भी उसको नही देखा अब भी जो सिख उस स्थान पर जाते है वह भेटेँ अर्पण करकर वहां पर माथा टेकते है और उस स्थान का सतिकार करते है ।
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By Sant Vachan
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