Guru Teg Bahadur Ji aur Bhyanak Pret । गुरु तेग बहादुर जी और भयानक प्रेत

 

साध संगत जी जब बादशाह औरंगजेब के बुलावे पर सतगुरु तेग बहादुर जी महाराज जब दिल्ली पहुंचे तो औरंगजेब के कहने पर सतगुरु को उस हवेली में रखा गया जहां पर एक प्रेत रहता था कोई भी व्यक्ति जो उस हवेली में जाता था तो वह प्रेत उसको मार देता था तो बादशाह की आज्ञा लेकर पहरेदार सतगुरु महाराज जी को उस हवेली में ले गए चारों दिश्याओं में पहरेदार बिठा दिए गए जो सेवक गुरु जी के साथ थे वह बाहर बिठा दिए गए उधर औरंगजेब सोचने लगा कि अब वह प्रेत गुरुजी को मार देगा तो औरंगजेब के वजीर उसको कहने लगे कि आपने बहुत ही अच्छा तरीका अपनाया है कि मारने के बिना ही गुरु को मार दिया जाएगा नहीं तो डर के कारण मुसलमान हो जाएंगे उधर हवेली के चारों तरफ पहरेदार खड़े हुए थे और सतगुरु हवेली के अंदर विराजमान थे तो जब रोशनी खत्म हो गई और अंधेरा छा गया तो वह प्रेत उस हवेली के अंदर आ गया वह भयानक देह वाला प्रेत गुरुजी के सामने प्रकट हो गया तो जब उसने सतगुरु को देखा तो उनके तेज से बहुत प्रभावित हुआ तो उसने अपने हाथ जोड़कर गुरु जी के चरणों में नमस्कार की और निमाना होकर विनती की कि हे गुरु जी आप जी का जहां पर वासा हुआ है और मुझे अपने दर्शन दिए हैं मैं धन्य हो गया हूं आप मुझे अपना सेवक जाने और मुझे आदेश करें जल को छूने की मुझ में शक्ति नहीं अगर मैं आपके लिए भोजन लेकर आऊं तो मुझे पता नहीं मेरे हाथों का भोजन आप ग्रहण करेंगे या नहीं यहां पर जो भी आपका दोषी हैं आप जैसा हुकुम करो मैं उसको मार देता हूं उनको पकड़कर नगर से दूर जाकर मार दूंगा कोई जान नहीं पाएगा इस तरह कर दूंगा और उनके बच्चे आदि खत्म कर दूंगा उनके घर की जड़े उखाड़ दूंगा आप जी की आज्ञा के अनुसार ही मैं यह सब कुछ कर दूंगा तो प्रेत की बातें सुनकर सतगुरु जी ने फरमाया कि हमने किसी को भी दुश्मन नहीं माना किसी को मारना उचित नहीं क्योंकि सभी जीव अपने भागों के कारण है यह करने वाला एक परमेश्वर ही है उसके आगे यह बेचारा जीव क्या है परमेश्वर ही सभी को मारता और उनकी रक्षा करता है इसलिए शांत होकर रहे यह सुनकर प्रेत सोचने लग गया कि गुरु जी का मेरे पास वासा हुआ है अब मेरे पास मौका है अब मैं इनकी कोई सेवा करूं तब ही मेरा काम सफल होगा तो वह प्रेत अंतर्ध्यान हो गया और वह एक बहुत बड़े बाजार में चला गया जहां पर बहुत कुछ था और वहां जाकर सोचने लग गया कि मैं गुरु जी के लिए कोई ऐसी वस्तु खरीद लूं जो कि गुरु जी मेरे हाथों से ग्रहण कर सके और उसमें से कोई नुक्स ना निकाले तो उसने सभी बाजार में उस वस्तु की खोज की और वह एक दुकान के आगे जाकर खड़ा हो गया तो वहां पर सूखे मेवे पड़े हुए थे और वहां उसने संधूरी रंग के सेब और भी बहुत सारे फल देखें तो इतना सोचा कि यह गुरुजी के लिए लेकर चल पड़ता हूं और साथ में ही उसने हाथ में गन्ने भी ले लिए और जल्दी ही गुरुजी के पास चला गया और सभी फल गुरुजी के आगे रखकर गुरुजी के आगे प्रार्थना की कि हे गुरु जी कृपया आप यह फल ग्रहण करें आप मेरे मेहमान हैं और आपकी सेवा करना मेरा धर्म है तो उसकी ऐसी बातें सुनकर गुरु जी ने मेहर भरी निगाह से उस प्रेत की तरफ देखा तो गुरुजी ने उसको निमाणा जानकर उसकी भेंट सभीकार की और हाथ में कुछ मेवे ले लिए और फिर गुरुजी गन्ने चूसने लग गए तो गुरु जी गन्ने के छिल्के कुछ आगे फेंक रहे थे और कुछ हवेली के बाहर फेंक रहे थे तो फिर गुरुजी ने पूछा कि आपने ऐसा कौन सा पाप किया था ऐसा कौन सा कर्म किया था कि आपको यह प्रेत का जन्म मिला है यह जून आपको मिली है तो प्रेत ने हाथ जोड़कर गुरुजी के आगे विनती की की मैंने यह शरीर किसी अन्य कर्म करने के कारण पाया है तो उस प्रेत ने बताया कि हमारे परिवार में एक बहुत बड़ा झगड़ा पैदा हो गया था उसमें परिवार का हर सदस्य यह कहने लग गया था कि यह सभी जायदाद मेरी है उस समय मैंने एक मर्यादा धारण करके सभी के मनों में एक भ्रम पैदा कर दिया और पूरा मुकदमा जीत लिया और मैं उस समय मन में सोच रहा था कि यह कुछ गलत नहीं लेकिन मुझे उस पाप के कारण यह जून मिली जिसमें मुझे बहुत दुख मिला है हे गुरु जी आप जी मेरे ऊपर दया करें मुझे इस जुनी से निकाल दें तो यह सुनकर सतगुरु ने मुख से वचन फरमाए,जो नीचे छिलके पड़े हुए हैं इनको प्रेम से स्वीकार करें और जो आपने हमारी सेवा की है उसका फल ले और इस भयानक जून से छुटकारा कर ले तो उत्तम अवस्था वाला आनंद प्राप्त कर लिया और भाई जन्म मरण से मुक्त हो गया तो उसके बाद गुरुजी अपने नेत्र बंद कर कर लेट गए, तो उस समय सतगुरु ने गन्ने की छिल्के हवेली के बाहर फेंके थे उस समय पास में ही सिंह बैठे हुए थे तो उसमें से एक सिंह ने सतगुरु द्वारा चूसे हुए गन्ने का छिलका अपने मुंह में डाल लिया और जब वे उस छिल्के को चूसने लगा तो उसे बहुत आनंददायक स्वाद प्राप्त हुआ आनंद प्राप्त हुआ साध संगत जी जब उसने सतगुरु द्वारा फेंके हुए छिलके को ग्रहण किया तो वह बहुत शक्तिशाली हो गया उसके बाद उसे इस बात का अहंकार भी हो गया और इस तरह का सोचने लग गया कि मेरे मुकाबले का जहां पर कोई भी नहीं है तो इसी तरह सूरज चड गया और अंधेरा खत्म हो गया तो उस समय यहां पर सतगुरु जी शांति के साथ विराजमान थे तो वहां पर और कुछ सैनिक सद्गुरु के पास आए तो उन्होंने देखा कि प्रेत ने कुछ भी नहीं बिगाड़ा और अब वह गरीबी नहीं  और बहुत ही आराम से बैठे हुए हैं, जब सतगुरु हवेली से बाहर निकले तो उनके जो सिख साथी थे उनसे मिलने आए तब उन्होंने सतगुरु के चरणों में अपना सिर रखकर उन्हें नमस्कार की साध संगत जी उस समय जो शक्तिमान मनुष्य जिसने गन्ने के कुछ छिल्के उठाए थे दोनों हाथ जोड़कर बोला कि गुरु जी आप इतने दुख क्यों सहन कर रहे हैं आप एक बार मुझे हुकम करें मैं हर तरह से समरथ हूं मैं जो चाहूं वह कर सकता हूं हर किसी रूप में आप इसे देख सकते हैं मैं आपके हुक्म से तुर्क बादशाह समेत सब तुर्को को मार दूंगा मैं ऐसा काम करके दिखाऊंगा कि इनकी संतान भी बच नहीं पाएगी दिल्ली और लाहौर में जहां पर तुर्कों का बहुत जोर है जहां पर तुर्कों के बहुत बड़े घर हैं जहां पर स्त्रियां पुत्तर और बहुत बड़े परिवार जहां पर रहते हैं दोनों नगरों की जितनी धरती है उतनी मैं अपने दोनों हाथों से ऊपर उठा लूंगा और बहुत तेजी के साथ इन को आपस में टकरा कर इन के सभी घर तोड़ दूंगा इन का खात्मा कर दूंगा फिर इनको उल्टा कर कर नीचे फेंक दूंगा जिस करके फिर यह दुश्मन नहीं उठ पाएंगे इस समय में मेरे पास ऐसी बहुत सारी शक्तियां हैं कृपया आप मुझे वचन करें यह दोषी तुर्क आपका अपमान करते हैं आपके चारों तरफ इनके आदमी लगे हुए हैं यह आपको दुख देना चाहते हैं इसलिए हम अपमान क्यों करने दे मैं ऐसा काम करूंगा कि यह आपके बाहों में आकर पड़ जाए तो उस सिंह की ऐसी बातें सुनकर सतगुरु मुस्कुराओ उठे और उसका हाथ पकड़कर सतगुरु ने हल्का सा दवा दिया गुरु जी ने जो शक्ति पैदा हुई थी वह सारी खींच ली उसकी देह फिर उसी तरह खाली हो गई तो उसे अपने अंदर जाना कि वह फिर फोक हो गया है उसके अंदर पहली वाली शक्ति नहीं रही वह पछतावा करता हुआ दुख महसूस कर रहा था और सोच रहा था कि यह मेरे साथ क्या हो गया है तो उसके बाद सतगुरु ने उसे सिख को कहा कि जिस तरह आप चाहते हो वैसा करें आप नगरों को आपस में टकरा दे तो यह सुनकर वह सिंह सतगुरु की तरफ देखने लग गया और निमाना हो गया और हाथ जोड़कर बोला कि आप सभी संसार के पालनहार हो और नाश करता भी हो आप पूरे संसार के करता पुरख हो आप जो चाहो वह करते हो मैंने आपके बड़े प्रताप की महिमा नहीं जानी और अपने आप को जिताने लग गया कि मैं गुरु जी की सहायता करूंगा कि इन सभी लोगों को मार गिरा लूंगा तब गुरूजी मेरे शरीर अंदर बड़ी शक्ति प्रवेश हो गई थी सभी बातें सच्ची कही थी लेकिन जब आपने मेरी बाजू पकड़ी तब मैं कंगाल हो गया मेरे अंदर कोई भी शक्ति नहीं रही मेरे अंदर जो भी जोर था वह सारा खत्म हो गया अब आप जैसा चाहते हैं वैसा करें तो यह सुनकर सतगुरु जी उस सिंह को समझाने लगे जो शरदाह धारण करके हमारे पास आया था और तूने सिख धर्म को अच्छी तरह निभाया और फिर तुर्कों के बुरे व्यवहार को देखकर मन में सोच विचार करने लगा और फिर आपने हमारे ऊपर शक किया कि यह गुरुजी समरथ वान है या फिर नहीं इसलिए हमने आपकी तरफ गन्ने के छिलके फेंके थे आपने गन्ने का स्वाद देखने के लिए मन में इच्छा धारण की और हमारे झूठे छिल्के मुंह में डाल लिए जिसके कारण तेरे अंदर शक्ति आ गई थी जिस की सेवा करके अंदर शक्ति पैदा हुई लेकिन आपने इस तरह की विवेक शक्ति को समझा ही नहीं यह सुनकर उस सिख ने नमस्कार की और कहा कि हे प्रभु जी ये आप अपनी लीला खुद ही जानते हैं तो बात भी करते हैं वह हमसे देखा नहीं जाता इसलिए आपके पास आकर मैंने यह सब कहा था हे प्रभु जी मुझे माफ कर दे हमारी मत अनजान है फिर ऐसी बात कभी नहीं करूंगा अब आपको जिस तरह अच्छा लगे आप उसी तरह कार्य करें ।

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By Sant Vachan


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