Guru Teg Bahadur ji ki Sakhi । गुरु तेग बहादुर जी पर गोलियां क्यों चलाई गई !

 

साध संगत जी आज की साखी सतगुरु तेग बहादुर जी और धीरमल की है जब धीरमल ने गुरु जी पर गोली चला दी थी आइए बड़े ही प्रेम और प्यार के साथ आज का यह प्रसंग श्रवण करते हैं ।

साध संगत जी मखन शाह लुबाना गांव टांडा जिला जेहलम का रहने वाला था और देशों विदेशों में व्यापार का काम करता था तो एक बार जब वह किसी देश से जहाज में समान लेकर समुंदर में अपने देश की तरफ आ रहा था तो समुंदर में तूफान होने के कारण जहाज रेत में फस गया जब जहाज को निकालने के लिए मक्खन शाह की कोई भी तरकीब काम नहीं आई तो विवश होकर मक्खन शाह ने गुरुजी का ध्यान करके हाथ जोड़कर अरदास की कि हे सच्चे पातशाह ! मैं गुरु घर का सेवक हूं कृपया मेरी सहायता करें मेरा जहाज जिलन में से निकालकर एक तरफ़ लगा दे तो मैं 500 मोहरे आप जी को भेंट में दूंगा साध संगत जी जब मक्खन शाह की बेनती अंतर्यामी सतगुरु महाराज जी ने सुनी तो आप जी ने अपना कंधा देकर उसका डूबता हुआ जहाज एक तरफा किया और अपने सेवक की अरदास कबूल की, जहाज को एकतरफा करकर जब मक्खन शाह ने सभी सामान बेच लिया तो अपनी भेंट देने के लिए दिल्ली शहर पहुंच गया तो दिल्ली पहुंच कर उसको पता लगा कि श्री गुरु हरकृष्ण साहिब जी महाराज ज्योति ज्योत समा गए हैं और उन्होंने होने वाले नवमें सतगुरु के बारे में सिर्फ इतना ही बताया था कि वह बाबा बकाला में विराजमान है तो भाई मक्खन शाह गुरुजी के दर्शनों के लिए अपनी पत्नी और पुत्र को साथ लेकर बाबा बकाला की तरफ चल पड़ा उसके साथ 500 सिपाही थे तो जब वह बाबा बकाला पहुंच गया तो उसने देखा कि वहां पर तो बहुत सारे गुरु बने बैठे हैं तो मैं किसको अपनी यह 500 मोहरें भेंट में दूं तो उसने यह विचार किया कि जो 500 मोहरें खुद ही मांग लेगा वही सच्चा गुरु होगा तो उसने वहां पर गद्दी लगा कर बैठे सभी गुरुओं के आगे दो दो मोहरे रखकर सभी को माथा टेका जब किसी ने भी 500 मोहरे नहीं मांगी तो वह पूछता हुआ सतगुरु तेग बहादुर जी के पास जा पहुंचा आप जी भोरे में बैठे हुए बंदगी में लीन थे उस अकाल पुरख की बंदगी कर रहे थे तो उसने सतगुरु के आगे दो मोहरें रखकर आप जी के आगे माथा टेका तो सतगुरु ने मुस्कुरा कर कहा की हे पाई मक्खन शाह तू 500 मोहरे की सूखना सुख कर गुरु घर को दो मोहरे दे रहा है तुझे गुरु घर की पूरी राशी देनी चाहिए तो ऐसे वचन सतगुरु के मुख से सुनकर मक्खन शाह को यकीन आ गया कि बाबा बकाले वाले यही सच्चे सतगुरु है उसने तुरंत ही 500 मोहरें गुरु जी की भेंट कर दी और खुशी में छत पर जाकर ऊंची ऊंची यह पुकार करने लगा कि गुरु लादो रे, गुरु ला दो रे, तो इस तरह जब सभी को पता चल गया कि सिखों के 9 गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी हैं तो संगति खुशी से भेंट लेकर सतगुरु के दर्शन करने आने लगी तो वहां पर साध संगत जी मक्खन शाह ने अपनी वार्ता सुनाई कि उसके साथ क्या हुआ और किस तरह उसने गुरुजी को ढूंढा है तो ये सुनकर संगतों ने गुरुजी को भेंटे चढ़ा कर उनके आगे माथा टेका दूसरी तरफ बाबा बकाला में जो नकली गुरु बने बैठे थे उनमें से एक धीरमल भी था वह साथ में गुरु श्री गुरु हर राय जी का भाई था जो अपने आपको गुरु गद्दी का हकदार मानता था जब श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी गुरु गद्दी पर विराजमान हो गए और संगत की तरफ से जब उनको चढ़ावा चढ़ने लगा और उनको माथा टेका जाने लगा तो धीरमल इरखा और क्रोध से भर गया उसने अपने मसादों को इकट्ठा कर कर एक योजना बनाई कि गुरु जी को जान से मार दिया जाए तो ये सुनकर उसके एक मसंद ने करने के लिए इकरार कर दिया उसने ,20,25  हथियारबंद सिपाहियों को साथ लिया और उसने कहा कि जब आप गुरुजी के पास पहुंच जाओ तब अच्छी तरह निशाना बनाकर उन्हें मार देना उसके बाद जो होगा वह देखा जाएगा बस एक बार उन्हें मार दे जब सभी सतगुरु के घर जा पहुंचे हैं सभी एक बार में ही ललकार कर सतगुरु को पड़ गए तू गुरुजी के पास जो आदमी वहां रह रहे थे वह लाचार होकर कहने लगे कि क्या कर रहे हो तो वह मसंद आकर उन्हें भी पड़ गए और लड़ाई करते हुए अंदर आ गए तो उन्होंने अंदर सतगुरु को विराजमान देखा तो उसने ऊंची आवाज़ मे सीहा मसंद को कहा बंदूक निकाल कर मार दो उसने तुरंत ही निशाना बनाकर बंदूक चला दी तो गोली गुरुजी के सिर की तरफ चल कर आई तो गुरु जी ने हंगारा भर कर वह गोली दूसरी तरफ फेंक दी, गोली  मस्तक के साथ लगकर निकल गई और कुछ मास चीर हो गया और उस समय सतगुरु के मस्तक में से खून निकलने लगा तो सेवकों ने बहुत डर माना क्योंकि सभी बहुत डर गए थे और उन्होंने बहुत शोर मचा दिया तो सिया मसंद के आदमियों ने ताड़ना करके लोग बहुत दूर कर दिए और कुछ सेवक नीचे बिठा दिए और उसके बाद सीहा मसंद ने गुरु घर की सभी वस्तुएं खो ली और गुरु जी के प्रति बहुत गलत शब्द बोले लेकिन सत गुरु तेग बहादुर जी धीरज धरकर बैठे रहे,  कुछ भी गलत नहीं बोला और ना ही धन पदार्थ लेकर जाने से धीरमल के आदमियों को उन्होंने रोका साध संगत जी जब इस बात की खबर भाई मखन शाह लुबाना को हुई तो उन्होने धीरमल और उसके साथियों को जाकर घेर लिया और उसके साथियों को खूब सबक दिया और ताड़कर आगे लगा लिया उन्होने वह गुरु जी का लूटा हुआ समान ही नहीं बल्कि धीरमल का समान भी खो लिया साध संगत जी श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की भीड़ भी ले ली, सबको गुरुजी के आगे पेश किया गया तो उसने अपनी भूल मानी और सतगुरु से माफी मांगी सतगुरु ने उसको माफ कर दिया और उसको भले पुरुष बनने का जीवन उपदेश देकर विदा किया साध संगत जी जब सद्गुरु को इस बात की खबर हुई कि भाई मक्खन शाह और उसके आदमी धीरमल का सभी माल छीन कर ले आए हैं तो आप ने कहा की सभी वस्तुएं उसे वापस कर दो साध संगत जी सब कुछ तो वापस कर दिया लेकिन श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की भीड़ सत गुरु अर्जन देव जी महाराज जी ने तैयार करवाई थी वह नहीं वापिस की क्योंकि उनका मानना था कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी किसी की निजी अमानत नहीं यह सब सिखों की सांझी है और जहां पर गुरु जी विराजमान हो वहां पर मौजूद होनी चाहिए ।

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