धनासरी महला ४ ॥ हरि हरि बूंद भए हरि सुआमी हम चात्रिक बिलल बिललाती ॥ हरि हरि क्रिपा करहु प्रभ अपनी मुखि देवहु हरि निमखाती ॥१॥ हरि बिनु रहि न सकउ इक राती ॥ जिउ बिनु अमलै अमली मरि जाई है तिउ हरि बिनु हम मरि जाती ॥ रहाउ ॥ तुम हरि सरवर अति अगाह हम लहि न सकहि अंतु माती ॥ तू परै परै अपर्मपरु सुआमी मिति जानहु आपन गाती ॥२॥
अर्थ: हे भाई! परमात्मा के नाम के बिना मैं रक्ती भर समय के लिए भी नहीं रह सकता। जैसे (अफीम आदि) नशे के बिना अमली (नशे का आदी) मनुष्य तड़प उठता है, वैसे ही परमात्मा के नाम के बिना मैं घबरा जाता हूँ। रहाउ।हे हरी! हे स्वामी! मैं पपीहा तेरे नाम की बूँद के लिए तड़प रहा हूँ। (मेहर कर), तेरा नाम मेरे वास्ते (स्वाति) बूँद बन जाए। हे हरी! हे प्रभू !अपनी मेहर कर, आँख झपकने जितने समय के लिए ही मेरे मुँह में (अपने नाम की स्वाति) बूँद डाल दे।1।हे प्रभू! तू (गुणों का) बड़ा ही गहरा समुंद्र है, हम तेरी गहराई का अंत रक्ती भर भी नहीं पा सकते। तू परे से परे है, तू बेअंत है। हे स्वामी! तू कैसा है और कितना बड़ा है– ये भेद तू खुद ही जानता है।2।हे भाई! परमात्मा के जिन संत जनों ने परमात्मा का नाम जपा, वे गुरू के (बख्शे हुए) गाढ़े प्रेम-रंग में रंगे गए, उनके अंदर परमात्मा की भक्ति का रंग बन गया, उनको (लोक-परलोक में) बड़ी शोभा मिली। जिन्होंने प्रभू का नाम जपा, उन्हें श्रेष्ठ सम्मान प्राप्त हुआ।3।पर, हे भाई! भक्ति करने की विधि प्रभू खुद ही बनाता है (खुद ही सबब बनाता है), वह खुद ही मालिक है खुद ही सेवक है। गुरू नानक जी कहते हैं, हे प्रभू! तेरा दास नानक तेरी शरण आया है। तू खुद ही अपने भक्तों की इज्जत रखता है।4।5।
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