श्री गुरु अमरदास जी ने व्यास नदी के किनारे श्री गोविंदवाल नगर बसाया दूर-दूर से संगते उनके दर्शन करने आने लगी संगत की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ने लगी और कुछ लोग इस नगर में आकर बस गए तो सारा शहर प्रफुल्लित हो गया तो 1 दिन संगत में से एक प्यारे सिख ने सतगुरु जी से विनती की की हे गुरु जी अब संगत बढ़ गई है हमें यहां पर एक भवन बनाना चाहिए हमारे पास भवन को तैयार करने के लिए सब कुछ है लेकिन भवन की छत के लिए लकड़ी नहीं मिल रही तो उस प्यारे सिख की यह विनती सुन कर गुरुजी ने बाबा बुड्ढा जी से और अपने कुछ प्यारे सिखों से इसके बारे में चर्चा की और दूसरे ही दिन भाई सावन सिंह जी के साथ वार्तालाप की और उन्हें हुकुम दिया कि आप हरिपुर के राजा के पास जाएं और वहां से लकड़ी लेकर आएं और गुरु जी ने फरमाया कि तुम लकड़ियों को व्यास नदी में डाल देना और सेवक उन लकड़ियों को नदी में से निकाल लेंगे तो यह सुनकर भाई सावन जी ने सतगुरु से कहा की हे गुरु जी मुझे वहां पर कोई नहीं जानता, पता नहीं वहां के लोग मुझे लकड़ी देने के लिए राजी भी होंगे या फिर नहीं तो यह सुनकर सतगुरु कहने लगे की हे भाई सावन तू इस बात की चिंता क्यों कर रहा है और ऐसा कह कर सतगुरु ने अपनी जेब से एक रुमाल निकाला और भाई सावन को दे दिया और कहा की हे भाई सावन तुम जब उस नगर में लकड़ी लेने जाओगे तो इस रुमाल को अपने साथ अवश्य रखना इस रुमाल में रिद्धि सिद्धि है तुम जो भी इच्छा करोगे वैसा ही हो जाएगा लकड़ी देने से तुम्हें कोई मना नहीं करेगा तो भाई सावन ने गुरुजी से वह रुमाल लिया और सतगुरु के हुक्म के अनुसार वह हरिपुर के लिए निकल पड़े तो जब वह उस नगर में पहुंचे तो उस दिन वहां के राजे ने यह घोषणा करवाई हुई थी कि आज के दिन यहां पर कोई अन्न ग्रहण नहीं करेगा तो जब भाई सावन सिंह जी वहां पर पहुंचे तो उन्हें बहुत भूख लगी हुई थी तो भाई सावन ने भोजन तैयार किया और उसे ग्रहण कर लिया तो इसके बारे में किसी ने राजा को शिकायत कर दी कि कोई बाहर से आया हुआ है और उसने भोजन ग्रहण किया है और आपके हुकुम को नकारा है तो यह सुनकर राजा ने कहा कि उसको मेरे सामने लेकर आओ और साथ ही अपने सिपाहियों को हुकुम दिया कि जाओ उसे पकड़कर मेरे पास लेकर आओ तो राजा के हुक्म की पालना करते हुए सिपाही उसको ढूंढ कर पकड़ कर लेकर आए और जब भाई सावन को राजा के सामने पेश किया गया तो राजा ने कहा कि आज एकादशी है इसलिए हमने नगर में भोजन ना ग्रहण करने की घोषणा करवाई है क्या तुमने व्रत नहीं रखा तो यह सुनकर भाई साहब ने कहा कि गुरु घर का लंगर तो हमेशा चलता रहता है और वैसे भी गुरु घर इन कर्मकांड में विश्वास नहीं रखता तो भाई सावन जी की यह बात सुनकर राजा शांत हो गया लेकिन पास में ही बैठे एक वैरागी ने राजा को यह कहकर बड़का दिया कि इस व्यक्ति ने आपके हुकुम का पालन नहीं किया इसको तो कैद की सजा होनी चाहिए तो यह सुनकर राजा उस वैरागी की बातों में आ गया और उसने भाई सावन जी को कैद में डालने का हुक्म दे दिया दूसरे ही दिन राजा के पुत्र को हेजा हो गया जिसके कारण राजा के पुत्र की मौत हो गई और महल में मायूसी छा गई सब लोग विरलाप करने लगे तो यह सब देख कर राजा के मंत्री ने राजा को सलाह दी कि हे राजन आपने जिस व्यक्ति को कैद में डाला है वह व्यक्ति निर्दोष है और यह सब आपके साथ इसलिए ही हुआ है आपको उस व्यक्ति को छोड़ देना चाहिए उसे कैद से रिहा कर देना चाहिए और आपको अपनी इस गलती की उससे माफी मांग लेनी चाहिए तो राजा को उसकी सभी यह बातें सही लगी तो यह सभी बातें सुनकर राजा ने अपने वजीर को हुक्म दिया कि सावन मल को रिहा कर दिया जाए तो जब भाई सावन जी को रिहा कर दिया गया तो उन्होंने बाहर आकर महल का माहौल देखा कि सभी तरफ मायूसी छाई हुई थी तो यह सब देख कर भाई सावन जी ने कहा कि अगर राजा गुरु जी का सिख बन जाए तो गुरु जी की कृपा से उसका पुत्र जीवित हो जाए तो भाई सावन जी के मुख से यह बात सुनकर वजीर ने राजा से बात की और राजा को बताया कि सावन मल तो ऐसे कह रहा है तो राजा ने यह सुन कर कहा कि अगर गुरुजी मेरा पुत्र जीवित कर देंगे तो मैं और मेरा परिवार गुरुजी के सिख बन जाएंगे तो उसके बाद फिर राजा ने भाई सावन को अपने दरबार में बुलाया और राजा भाई सावन जी के आगे विनती करने लगा कि कृपया करके मेरे पुत्र को जीवनदान दिलवा दो तो यह सुन कर भाई सावन ने राजा को कहा कि पहले आप रोना बंद करें और वाहेगुरु का सिमरन करें तो यह सुनकर सभी ने रोना बंद कर दिया और वाहेगुरु का सिमरन करने लगे और भाई सावन जी उनके साथ वाहेगुरु का सिमरन करने लगे और तब ही भाई सावन ने अपनी जेब में से वह रुमाल निकाला और उस रुमाल को पानी में डाल दिया और फिर उसके बाद रुमाल को राजा के पुत्र के मुंह पर निचोड़ दिया तो जेसे ही भाई सावन ने रूमाल को निचोड़ा तब ही उसके पुत्र ने अपनी आंखें खोली और उठ कर बैठ गया तो ये देख कर राजा और उसकी पत्नी भाई सावन जी के चरणों में पड़ गए और वह गुरुजी के सिख बन गए तो कुछ दिनों के बाद राजा ने भाई सावन को अपने पास बुलाया और उनसे यहां आने का कारण पूछा तो भाई सावन ने कहा कि गुरु अमरदास जी ने व्यास के पास एक नगर बसाया है जिसका नाम गोविंदवाल है और सतगुरु वहां पर संगत के ठहराव के लिए एक भवन तैयार करवा रहे हैं जिसके लिए बहुत सारी लकड़ी की जरूरत है तो यह सुनकर राजा ने तुरंत ही अपने सिपाहियों को हुकुम दिया की पेड़ों को काटकर बड़ी-बड़ी लकड़ियों के गठल बनाकर नदी में बहा दिए जाए तो सिपाहियों ने ऐसा ही किया पेड़ों को काटकर लकड़ियों के बड़े-बड़े गठल व्यास नदी में बहा दिए तो जब लकड़ियों की जरूरत पूरी हो गई तो गुरु जी ने भाई सावन जी को संदेश भिजवा दिया कि अब लकड़ियों की जरूरत पूरी हो गई है अब तुम वापस आ जाओ तो सतगुरु का यह संदेश पढ़कर भाई सावन यह सोचने लग गए कि अगर मैं गोइंदवाल वापस चला जाऊंगा तो गुरुजी यह चमत्कारी रुमाल मुझसे वापस ले लेंगे फिर मेरे पास कोई शक्ति नहीं रह जाएगी मैं गोइंदवाल ना ही जाऊं तो अच्छा है तो भाई सावन ने गुरुजी के आदेश का पालन नहीं किया वह गोइंदवाल नहीं गया तो गुरु जी ने तुरंत ही अपने उस रुमाल को आदेश दिया कि वह गोइंदवाल में वापस आ जाए तो वे रुमाल उसी समय सतगुरु के सामने प्रकट हो गया तो जब भाई सावन को बहुत ढूंढने पर भी वह रूमाल नहीं मिला तो उसे पता लग गया कि उस रुमाल को सतगुरु ने अपने पास वापस बुला लिया है तो अब भाई सावन जी बहुत पछता रहे थे कि वह अब गुरु जी से माफी कैसे मांगेगे तो फिर उन्होंने गोइंदवाल वापस जाने का फैसला किया तो भाई सावन जी ने अपना यह फैसला राजा को बताया कि मैं अब गोइंदवाल वापस जा रहा हूं और आप भी मेरे साथ वहां पर चलिए और गुरु जी के दर्शन कीजिए वह संगत की मनोकामना जरूर पूरी करते हैं तो यह सुनकर राजा ने अपनी रानियों के साथ गुरु जी के दर्शन करने का फैसला लिया तो जब वह गोविंदबाल पहुंचे तो भाई सावन जी ने सबसे पहले जाकर गुरु जी के आगे माथा टेका और सतगुरु को बताया कि हे गुरुजी हरिपुर के राजा अपनी रानियों के साथ आप जी के दर्शन करने आए हैं तो गुरुजी ने कहा कि पहले आप उनको जाकर कहें कि लंगर में जाकर प्रसादा ग्रहण कर ले उसके बाद मेरे पास आए और साथ ही गुरु जी ने भाई सावन को कहा कि जब भी वह मेरे पास आए तो वह सादे कपड़ों में आए सफेद कपड़े पहन कर सभी मेरे पास आए तो सतगुरु का ये हुकुम पाकर राजा सफेद कपड़ों में अपनी रानियों के साथ सतगुरु के दर्शन करने के लिए चल पड़े तो सभी सफेद कपड़ों में थे लेकिन सतगुरु के साथ बैठे कुछ शिक्षकों को देखकर राजा की 1 रानी ने घुंघट नीचे कर लिया तो जब गुरुजी की नजर उस रानी पर पड़ी तो गुरुजी ने कहा कि अगर इसको यहां पर हमारे दर्शन नहीं करने तो यह कमली यहां पर क्या करने आई है तो गुरु जी के मुख से जब यह शब्द निकले तो उसी समय उस रानी ने अपनी सुध बुध खो दी और चिल्लाती हुई बाहर चली गई और भागती भागती एक जंगल में चली गई तो उसको बहुत ढूंढा गया लेकिन वह नहीं मिली तो 1 दिन गुरुजी का एक सेवक जो जंगल में लकड़ी काटने जाता था जब 1 दिन लकड़ी लेने के लिए जंगल गया तो उसको पीछे से किसी ने पकड़ लिया तो जब उसने देखा कि उसको पीछे से किसी औरत ने पकड़ लिया है तो उसने अपने आप को उस से छुड़वाने की कोशिश की और उसने देखा कि उस औरत के बाल पुरे बिखरे हुए हैं और वह पागल है और वह ताली बजा बजाकर हंस रही थी तो जब सेवक ने उससे कुछ पूछने की कोशिश की तो वह गायब हो गई और जंगल में चली गई तो अपने साथ हुई यह सारी वार्तालाप उस सेवक ने गुरु जी को बताइ तो गुरुजी ने कहा कि यह वही पागल रानी है और गुरु जी ने अपने उस सेवक को अपनी खड़ाऊ देकर कहा कि अब जब भी तुम्हें वह दोबारा मिले तो हमारी यह खड़ाऊ उसे छुआ देना तो सेवक गुरुजी कि वह खड़ाऊ लेकर जंगल में उस औरत को ढूंढने के लिए निकल पड़ा तो फिर एक दिन उसे वह औरत दिखी और जैसे ही उसने उस औरत को देखा तो सेवक ने वह खड़ाऊ उसको छुआ दी तो जैसे ही वह खड़ाऊ उसे छुआ दी गई उसी समय उसकी सुध बुध वापस आ गई और वह ठीक हो गई और वापस गोइंदवाल आ गई तो गुरु जी ने उसको अपना आशीर्वाद दिया और उसका विवाह उस सेवक के साथ करवा दिया ।
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By Sant Vachan
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